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1 | वैचारिक पूरà¥à¤µà¤—à¥à¤°à¤¹ और पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द का दलित-पाठ| 01-05 |
Author(s): डॉ. सà¥à¤§à¥€à¤° पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª सिंह | ||
Abstract वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ समय दलित और सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ सरोकारों से समà¥à¤¬à¤‚धित साहितà¥à¤¯ के उà¤à¤¾à¤° का है । à¤à¤¸à¥‡ में न केवल वतरà¥à¤®à¤¾à¤¨ साहितà¥à¤¯ वरन पूरà¥à¤µ में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤®à¥à¤– साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के लेखन का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤ªà¤¾à¤ किया जा रहा है । साहितà¥à¤¯ की दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में अकà¥à¤¸à¤° कहा जाता है कि साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• पाठके अरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¿à¤° नहीं होते, बदलते समय संदरà¥à¤ के साथ उनमें बदलाव होता रहता है। इन बदलाव के कारणों कि परख आवशà¥à¤¯à¤• है परनà¥à¤¤à¥ किसी पूरà¥à¤µà¤—à¥à¤°à¤¹ के साथ नहीं । यह शोधपतà¥à¤° पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚द के साहितà¥à¤¯ का दलित दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¥‹à¤£ के किये गठपà¥à¤¨à¤°à¥à¤ªà¤¾à¤ का पाठà¥à¤¯à¤¾à¤²à¥‹à¤šà¤¨ है । Citation By: DOP: 30-06-2017 | ||
2 | संघरà¥à¤·à¤¶à¥€à¤² निमà¥à¤¨ वरà¥à¤— और समकालीन कहानियाठ| 06-09 |
Author(s): डॉ सीमा कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ | ||
Abstract बदलते समाजिक- सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• परिवेश में निमà¥à¤¨ वरà¥à¤— ( गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ मजदूर, शहरी मजदूर, औदà¥à¤¯à¥‹à¤—िक मजदूर ,किसान आदि ) के जीवन -संघरà¥à¤· को समकालीन कथा साहितà¥à¤¯ में पà¥à¤°à¤®à¥à¤–ता से उà¤à¤°à¤¾ गया है । पूंजीवादी ताकतों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ व शहरी परिवेश में जीवन यापन कर रहे मजदूर,किसान के शोषण , उनके जीवन -संघरà¥à¤· तथा निमà¥à¤¨ वरà¥à¤— दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शोषणकारी ताकतों के विरोध को समकालीन कथाकारों ने विशेष रूप से रेखांकित किया है ।निमà¥à¤¨ वरà¥à¤— के सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• उतà¥à¤ªà¥€à¤¡à¤¨ , वरà¥à¤£ à¤à¥‡à¤¦ जैसी समसà¥à¤¯à¤¾ को आज के जीवन का कलंक मानते हà¥à¤ यह शोध – पतà¥à¤° उन बिनà¥à¤¦à¥à¤“ं की पड़ताल करता है जो इस दमनकारी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को अब तक बनाय रखें हैं । Citation By: DOP: 30-06-2017 | ||
3 | à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥‡à¤‚दॠयà¥à¤— की ख़ताà¤à¤‚ और सज़ा à¤à¥à¤—तती सदियां | 10-15 |
Author(s): Dr. Pramod Kumar Tiwari | ||
Abstract à¤à¤¾à¤°à¤¤-पाकिसà¥â€à¤¤à¤¾à¤¨ के विà¤à¤¾à¤œà¤¨ में बड़ी à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤¨à¥‡à¤µà¤¾à¤²à¤¾ हिनà¥â€à¤¦à¥€-उरà¥à¤¦à¥‚ विवाद वासà¥â€à¤¤à¤µ में à¤à¤¾à¤·à¤¾ का विवाद नहीं था बलà¥à¤•à¤¿ सतà¥â€à¤¤à¤¾ और रोजगार में बड़ी हिसà¥â€à¤¸à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ के लिठवरà¥à¤šà¤¸à¥â€à¤µ की लड़ाई थी जिसे à¤à¤¾à¤·à¤¾ के नाम पर लड़ा जा रहा था। 1857 के विदà¥à¤°à¥‹à¤¹ के बाद, जिसमें हिनà¥â€à¤¦à¥‚-मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® कंधे से कंधा मिलाकर लड़े थे, अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ साà¤à¥‡à¤ªà¤¨ को तोड़ने के लिठकोई कारण ढूंढ रहे थे। जब कोई कारण नहीं मिला तो उनà¥â€à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• कारण पैदा करने की साजिश रची। आशà¥â€à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• ढंग से उस समय के à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ साहितà¥â€à¤¯à¤•à¤¾à¤° इस साजिश को समठनहीं पाठऔर आपस में लड़ने लगे। गौरतलब है कि ये साहितà¥â€à¤¯à¤•à¤¾à¤° सांपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• नहीं थे परंतॠइनके संघरà¥à¤· का सांपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• इसà¥â€à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करने में अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ सफल रहे। यह कहना कठिन है कि (तथाकथित हिनà¥â€à¤¦à¥€-उरà¥à¤¦à¥‚ के) साहितà¥â€à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की इस लड़ाई के मूल में उनके सà¥â€à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ और ठसक की अधिक à¤à¥‚मिका थी या नासमà¤à¥€ की परंतॠइतना निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ है कि ये साहितà¥â€à¤¯à¤•à¤¾à¤° अदूरदरà¥à¤¶à¥€ थे और देशà¤à¤•à¥â€à¤¤ होने के बावजूद लगà¤à¤— अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ की कठपà¥à¤¤à¤²à¥€ की तरह काम कर रहे थे। जिस हिनà¥â€à¤¦à¥€ की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ से अमीर खà¥à¤¸à¤°à¥‹, मà¥à¤²à¥à¤²à¤¾ दाउद, जायसी, वली दकà¥â€à¤•à¤¨à¥€, रसख़ान, रहीम आदि से लेकर नज़ीर अकबराबादी, मीर, मिरà¥à¥›à¤¾ ग़ालिब जैसे लोग जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ रहे थे और जिसके लिठउरà¥à¤¦à¥‚ शबà¥â€à¤¦ कà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¯à¥à¤•à¥â€à¤¤ नहीं हà¥à¤† था वह अचानक हिनà¥â€à¤¦à¥€, हिनà¥â€à¤¦à¤µà¥€, हिनà¥â€à¤¦à¥à¤¸à¥â€à¤¤à¤¾à¤¨à¥€, रेखà¥â€à¤¤à¤¾ जैसे नामों को छोड़ कर उरà¥à¤¦à¥‚ हो गयी और दूसरी ओर इन सब की करà¥à¤œà¤¦à¤¾à¤° हिनà¥â€à¤¦à¥à¤¸à¥â€à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ को आरà¥à¤¯à¤à¤¾à¤·à¤¾ का नाम देकर à¤à¤• खाई निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ की गयी। इस खाई को बनाने में हमारे सà¥â€à¤µà¤¨à¤¾à¤®à¤§à¤¨à¥â€à¤¯ साहितà¥â€à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ ने à¤à¥€ à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤¯à¥€ और तातà¥â€à¤•à¤¾à¤²à¤¿à¤• घटनाओं के दबाव में वे बड़े दिल का परिचय नहीं दे सके। कहने की आवशà¥â€à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ नहीं कि उस समय की गलतियों का à¤à¥à¤—तान हिनà¥â€à¤¦à¥€-उरà¥à¤¦à¥‚ साहितà¥â€à¤¯ को करना पड़ा और उसका परिणाम आज à¤à¥€ à¤à¤• बड़ा समाज à¤à¥à¤—त रहा है। Citation By: DOP: 30-06-2017 | ||
4 | à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ लोक की अवधारणा | 16-20 |
Author(s): Satish Kumar Pandey | ||
Abstract लोक अपने आप में à¤à¤• बहà¥à¤¤ ही वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• अरà¥à¤¥ छवि को पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ करता है। ‘लोक’ शबà¥à¤¦ जितना पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ है उसका अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ उतना ही नवीन है। ‘लोक’ शबà¥à¤¦ का अरà¥à¤¥ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°, गà¥à¤°à¤¾à¤®, जनता आदि शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ के परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ के रूप में माना जाता है, लेकिन इसका समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ सिरà¥à¤« सीमित गà¥à¤°à¤¾à¤® या जनता तक ही सीमित न होकर विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ मानव समाज से जà¥à¥œà¤¤à¤¾ है। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जो लोग अपनी संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ और परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं को सà¤à¥à¤¯ लोगों से दूर रहकर à¤à¥€ बचाठहà¥à¤ हैं दूसरे शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में यह à¤à¥€ कह सकते हैं कि जो अपनी पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤¤à¤¾ में नवीनता के बोध को महसूस करते हैं और सामूहिक à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से संचालित होते हैं उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लोक की संजà¥à¤žà¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। लोक का कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° तो काफी वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है फिर à¤à¥€ कतिपय विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लोक को à¤à¤• सीमा, à¤à¤• साहितà¥à¤¯ में बाà¤à¤§à¤¨à¥‡ की कोशिश की गई है। लोक का निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ लोक ही है। लोक की सबसे बड़ी पहचान उसकी सामूहिकता में निहित होती है। आज बदलते हà¥à¤ परिवेश में सà¤à¥à¤¯ और सà¥à¤¸à¤‚सà¥à¤•à¥ƒà¤¤ कहलाने वाली जाति ने समय के साथ-साथ रहन-सहन, जीवन जीने के तौर तरीकों में परिवरà¥à¤¤à¤¨ तो कर लिठपरनà¥à¤¤à¥ उनके साथ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं से जà¥à¥œà¤¾à¤µ आज à¤à¥€ कहीं न कहीं दिखाई देता है। यह जà¥à¥œà¤¾à¤µ कई सà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ पर दिखाई देता है, जैसे- धरà¥à¤® के रूप में, रीति-रिवाज के रूप में, उतà¥à¤¸à¤µ के रूप में आदि। अंततः हमें यह पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है कि लोक का अरà¥à¤¥ सामानà¥à¤¯à¤¤à¤ƒ गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ जन जीवन से नहीं लिया जाना चाहिà¤, बलà¥à¤•à¤¿ वे सà¤à¥€ वरà¥à¤— जो शहरी à¤à¤µà¤‚ गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ सà¥à¤¤à¤° पर अपनी संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं से जà¥à¥œà¥‡ हà¥à¤ हैं, सà¤à¥€ लोक के अंतरà¥à¤—त आते हैं। पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ शोध आलेख में इस तरह के तमाम मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‹à¤‚ को à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ परिपà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ में उकेरने की कोशिश की गई है। Citation By: DOP: 30-06-2017 | ||
5 | मानस का हंस : à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ à¤à¤µà¤‚ आधà¥à¤¨à¤¿à¤• समà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¨à¤¾ का समनà¥à¤µà¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• रूप | 21-24 |
Author(s): Dr. Anuradha Gupta | ||
Abstract लेखन में अपने ख़ास लखनवी अंदाज़ और à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के सजीव चितà¥à¤°à¤£ के लिठजाने जाने वाले अमृतलाल नागर हिनà¥à¤¦à¥€ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ साहितà¥à¤¯ की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ में निशà¥à¤šà¤¯ ही à¤à¤• विशिषà¥à¤Ÿ नाम है । १ॠअगसà¥à¤¤ १९१६ ,गोकà¥à¤²à¤ªà¥à¤°, आगरा उ० पà¥à¤°à¥¦ में जनà¥à¤®à¥‡ नागर जी का पिछला वरà¥à¤· जनà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤¬à¥à¤¦à¥€ वरà¥à¤· के रूप में सादर मनाया गया । इनके उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ à¤à¥‚खंड की परिधि में घूमने के बावजूद à¤à¥‚खंडीय à¤à¤•à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤• निजता पर सीमित न रहकर समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤ और à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ के रूप में उà¤à¤° कर आते हैं और यही उनके उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ की उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय खासियत है । बंगला के शरचà¥à¤šà¤‚दà¥à¤° की उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के माधà¥à¤¯à¤® से बंगोदà¥à¤˜à¤¾à¤Ÿà¤¿à¤¨à¥€ शकà¥à¤¤à¤¿ हिनà¥à¤¦à¥€ में अमृतलाल नागर में ही दीख पड़ती है । पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤‚दोतà¥à¤¤à¤° उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ में à¤à¤• दौर à¤à¤¸à¤¾ था जब अधिकाà¤à¤¶ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤•à¤¾à¤° आयातित दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ और विचारधारों को à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जनमानस पर रूपायित करते दिखते हैं । यह पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤—वाद की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ पाठकों के लिठसहज संपà¥à¤°à¥‡à¤·à¤£à¥€à¤¯ रही हो, संदेहासà¥à¤ªà¤¦ है । नागर जी à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ आतà¥à¤®à¤¾ के कà¥à¤¶à¤² चितेरे रहे हैं, उनके उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ à¤à¤¾à¤°à¤¤ की जड़ से जà¥à¥œà¤•à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ की आतà¥à¤®à¤¾ का उदà¥à¤˜à¤¾à¤Ÿà¤¨ करते चलते हैं । तà¤à¥€ ये निःसंदेह पाठक को देश की अंतरातà¥à¤®à¤¾ और बाहà¥à¤¯ परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° कराने में सकà¥à¤·à¤® रहे हैं । उपरोकà¥à¤¤ टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ में जब नागर जी के उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ को à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का वाहक कहा गया है तो उसके पीछे आशय उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ में आठपातà¥à¤°à¥‹à¤‚, वसà¥à¤¤à¥à¤“ं और सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के केवल à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ नामों और परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं के सà¥à¤¥à¥‚ल परिचय से नहीं अपितॠकथा के माधà¥à¤¯à¤® से किसी à¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जातिविशेष, पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶à¤µà¤¿à¤¶à¥‡à¤· की जीवन पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ के अंतरà¥à¤¬à¤¾à¤¹à¥à¤¯ रूप की उस अनà¥à¤¤à¤°à¤‚ग पहचान से है जो पूरे उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ में पैबसà¥à¤¤ होती है । इसी सनà¥à¤¦à¤°à¥à¤ में यह उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय है कि जब हम बात नागर जी के उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के दरà¥à¤¶à¤¨ की करते हैं तो उस समय उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ से कटा समà¤à¤¨à¥‡ की à¤à¥‚ल न करें, हाठवे पाशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ से आकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ अवशà¥à¤¯ नहीं थे । Citation By: 0 DOP: 30-06-2017 |